जय माँ संतोषी | मैथिलि कबिता | Maithili Lekh |
Tuesday, 26 May 2020
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जय माँ संतोषी
मैथिलि कबिता | Maithili Poem |
लेखक: Jagdish Chandra Thakur
गहबर जे गेलौं
दुरगाथान जे गेलौं
कालीसं जे मंगलौं
मैया दुरगासं मंगलौं
दीय' मैया एको संतान
हे सुगना रे सुगना, रे सुगना |
थिर ने रहै छल दगधल छाती
केलहु कतेको कबूला-पाती
विभूत दियेलौं गोहारि करेलौं
ब्राह्मण खुएलौं कुमारि खुएलौं
धुमन चढ़ेलौं दीपजे जरेलौं
आँचर पसारि कोखिक भीख जे मंगलौं
तइयो ने भेल कल्याण रे
सुगना रे सुगना, रे सुगना |
तोरा बिना अंगना अन्हार लगै छल
सगरो जिनगी पहाड़ लगै छल
छठी पावनि पुजलौं चौठचन्द्र पुजलौं
दिनकरसं जे मंगलौं चौठी-चानसं मंगलौं
केरा घौड चढ़ेलौं खीर-पूरी जे चढ़ेलौं
कोशिया कबुललौं ढकन कबुललौं
हमरा ले' सभ बनला अकान रे
सुगना रे सुगना, रे सुगना |
गेलौं शिवशंकरक शरणमे
लपटयलौं जा हुनके चरणमे
कुसेसर जे गेलौं बिदेस्सर जे गेलौं
कपलेसर जे गेलौं भवानीपुर गेलौं
गौरी लग कनलौं महादेव लग कनलौं
फूल-बेलपात आ गंगाजल चढ़ेलौं
कियो नहि देलनि धियांन रे
सुगना रे सुगना, रे सुगना ||
कमलो नहेने किछु नै भेल
सिमरियो डूब देने कष्ट ने गेल
सभतरिसं थकलौं त घर आबि बैसलौं
मोन मारि शुक्रक उपास तखन ठनलौं
धूप जे जरेलौं दीप जे सजेलौं
खीर जे चढ़ेलौं गुड-पूरी जे चढ़ेलौं
अठमा दिनपर मइया संतोषीजीकें पुजलौं
पुजितहि- पुजितहि दस मास पुजलौं
त फेरि देलनि मइया धियान रे
सुगना रे सुगना, रे सुगना |
कह जय माँ संतोषी
जय जय माँ संतोषी |--------
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