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जय माँ संतोषी | मैथिलि कबिता | Maithili Lekh |

जय माँ संतोषी

मैथिलि कबिता | Maithili Poem |
लेखक: Jagdish Chandra Thakur

गहबर जे गेलौं
दुरगाथान जे गेलौं
कालीसं जे मंगलौं
मैया दुरगासं मंगलौं

दीय' मैया एको संतान 
हे सुगना रे सुगना, रे सुगना |

थिर ने रहै छल दगधल छाती 
केलहु कतेको कबूला-पाती

 विभूत दियेलौं गोहारि करेलौं 
ब्राह्मण खुएलौं कुमारि खुएलौं 
धुमन चढ़ेलौं दीपजे जरेलौं
आँचर पसारि कोखिक भीख जे मंगलौं

तइयो ने भेल कल्याण रे
सुगना रे सुगना, रे सुगना | 

तोरा बिना अंगना अन्हार लगै छल 
सगरो जिनगी पहाड़ लगै छल 

छठी पावनि पुजलौं चौठचन्द्र पुजलौं
 दिनकरसं जे मंगलौं चौठी-चानसं मंगलौं 
केरा घौड चढ़ेलौं खीर-पूरी जे चढ़ेलौं 
कोशिया कबुललौं ढकन कबुललौं

हमरा ले' सभ बनला अकान रे
सुगना रे सुगना, रे सुगना

गेलौं शिवशंकरक शरणमे
लपटयलौं जा हुनके चरणमे

कुसेसर जे गेलौं बिदेस्सर जे गेलौं
कपलेसर जे गेलौं भवानीपुर गेलौं
 गौरी लग कनलौं महादेव लग कनलौं 
फूल-बेलपात आ गंगाजल चढ़ेलौं

कियो नहि देलनि धियांन रे
सुगना रे सुगना, रे सुगना ||

कमलो नहेने किछु नै भेल
सिमरियो डूब देने कष्ट ने गेल
सभतरिसं थकलौं त घर आबि बैसलौं
मोन मारि शुक्रक उपास तखन ठनलौं 

धूप जे जरेलौं दीप जे सजेलौं
खीर जे चढ़ेलौं गुड-पूरी जे चढ़ेलौं 
अठमा दिनपर मइया संतोषीजीकें पुजलौं
 पुजितहि- पुजितहि दस मास पुजलौं

त फेरि देलनि मइया धियान रे 
सुगना रे सुगना, रे सुगना |

कह जय माँ संतोषी
जय जय माँ संतोषी |--------

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