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जुनि कान रे | मैथिलि कबिता - Maithili Lekh

जुनि कान रे

मैथिलि कबिता -Maithili Lekh
लेखक: Jagdish Chandra Thakur


जुनि कान जुनि कान जुनि कान रे
बौआ जुनि कान रे,
 ने त कौआ ल' जेतौ तोहर कान रे |
खा ले जल्दी, सूति रह चुप-चाप
नहि त भकौआँ धरताे

सुनहिन हे जंगलमे गीदड़ बजै छै
टांग पकड़ी ल' जेतौ
एतौ लकडसुंघा धोकड़ीमे कसिक' 
नेने चल जेतौ अपन गाम रे |...

काल्हि अबैछै बौआके बाबू
नेने कते बस्तुनमा
हमरा बौआले' अंगा-टोपी
रंग-विरंगक खेलौना
साइकिलके घंटी बौआ टुनटुन बजेते
देखि जुडायत हमर प्राण रे |...

बचिया रधिया बड बदमास'छि
बौआ हमर बुधियार 
भोरे बौआक बाबाकें कहि क'
मंगबा देबै कुसियार
कल्हि खन नानीक गामसं अबैछै
चंगेरा भरल पूरी-पकवान रे |..

भोरे बौआले' भानस करबइ
भात-दालि-तरकारी
बुचियाकें कनियों नै देबै
बौआकें भरि थारी
दुःख केर ई राति बौआ बीतत अबस्से
असरा गरीबक भगवान रे |.......

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2 Comments to "जुनि कान रे | मैथिलि कबिता - Maithili Lekh"